बुधवार, 8 दिसंबर 2010

कुछ भी नहीं थमता
सब चलता रहता है
सब बदलता रहता है
वक्त और हालातो
के साथ खुद को बदलो
या हालत और वक्त को
बदल दो
वर्ना बदलाव बड़ा भयानक
होगा
जो तय है वह हादसा होगा

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

खरगोन जिले के उन थाना अंतर्गत ग्राम जमोटी में एक दलित लड़के ने ग्राम की ही ब्राहमण लड़की के साथ मंदीर में जाकर सदी कर ली है दोनों ने नोटरी के समक्ष सपथ पात्र भी बनाया और गायब हो गए दोनों बालिग है ये सपथ पत्र तस्दीक करने वाले नोटरी के समक्ष अपने स्कूली रिकार्ड भी पेस किया है बावजूद इसके थाना क्षेत्र के थानेदार द्वारा ग्राम के सवर्ण लोगो के दबाव में आकर दलित लड़के के परिजनों को बिना रिकार्ड के ठाणे में दो दीं बंद रखा और लड़के के माता पीता को डरा धमका रहा है की दो दीं में लड़की नहीं आई तो तुम्हारी खैर नहीं गव के दलित समाज सवर्णों के खोफ से गाव में नहीं जा रहा है पुलिस के आला अधिकारी भी उनको सरक्षण नहीं दे रहे है और मिडिया भी जातिवादी मानसिकता के चलते दलित समाज पीड़ा को इमानदारी से नहीं उठा रहा है

शनिवार, 21 अगस्त 2010

जिंदगी को नया आयाम दो

मुरादो को फिर जीवन दान दो

पतझड़ से मत हो उदास

जज्बातों को उफान दो

सच है हलाहल है सागर में

पर अमृत भी है सागर मंथन में

मै सागर तुम बनो मौज

खुद को मुझ में उतार दो

करो दफ़न नाउम्मीदी

भटक कर विरानो में

न बुझाओ आशाओं की बत्ती

ख्वाबो को असमान दो

शनिवार, 14 अगस्त 2010

बरसो से मानते आए

आज़ादी की ख़ुशी

आज भी आज़ादी की ख़ुशी है

फिर भी मेरे भारत को

आज़ादी की तिश्नगी है

जिन्दा लोगो का तो मौल नहीं

मुआवजे के रूप में लासे बिकी है

kank तो हो गए वतन

६४ सालो से यही मिला है आश्वाशन

पिछली बार भी लाल किले से दिया था

यही भाषण

महंगाई को काबू किया जाये गा

पर वो घटी नहीं गरीबो का घाट गया

राशन

बड़े महान हो मनमोहन जी

सरकार आप की है महान

भूक से मरे लोग

बजाय कर दो एक नेक काम

जहर पर देदो अनुदान

बुधवार, 11 अगस्त 2010

धरती क्या ,गगन क्या ,अमन क्या होता है
अब समझ गया ,तब मै पुष्प था
न समझा था चमन क्या होता है
अकड क्या ,शहर क्या ,जग क्या होता है
अब मै मनुज हूँ समझ गया मनुज क्या होता है
अपनी जिद और बचपन से मिलकर
tanaaw mukt umango के संग खेलता था
अपनत्व ,ममत्व की मिश्रित पवन में
पतंग सा लहराता था
पर आज में अपने ही अक्स से घबराता हूँ
लोग कहते है अब में बड़ा हो गया हूँ
जिंदगी को फूलो से महका दिया
रेगिस्तान में प्रीत का झरना बहा दिया
हर संग तू हमारे ख्वाब सा
चाँद सितारों की करू क्यू तमन्ना
तुमने चांदनी रत का मुझे अम्बर
बना दिया
आदमी तूने आदमी से
इंसान बनने में कितना
वक्त लगाया है
पर आफसोस तू इन्सान
नहीं बन पाया है
क्या माल है क्या पिस है
अपनी बहन बेटी के
लीए औरो को नाम सुजया है
अरे वो वासना के पिपासु
क्यू तू इंसान नहीं बन पाया है

सोमवार, 9 अगस्त 2010

दे नाम भी राज द्रोही
कोई परवाह नहीं
मेरी कविता पर
न मिले वाह-वाह
कोई परवाह नहीं
सरहद के पार है जो
इस पार भी वही हालत है
यहाँ हिन्दू मुस्लिम
वहा सिया सुन्नी
यहाँ कहे घुस पेठिये
वहा काफ़िर है
ये फकत सियासती तकरीर है
जिस दिन तुम मनाओ
उसी दिन हमारा भी
आज़ादी का जश्न है
पर कायम एक प्रश्न है
कौम मजहब और जुबान
का फसाद
इधर भी वही विवाद
खीच रहा जो नफ़रत की लकीर है
हमारे हुक्मरान उसी के वजीर है
झूट नहीं हकीक़त को लिखा है
साजिशो का निजाम अमेरिका है
गोला बारूद मिसाईले उसकी तिजारत
हमारे अमन से उसकी अदावत
पर सरहदों को अब दिलो से paat दो
उसकी मिसाइलो को उसी की और मोड़ दो

शनिवार, 7 अगस्त 2010

इंतज़ार करते करते आंखे पथरा गई
लगता है तकदीर ही ठुकरा गई
हम पानी के लिए तरसते रहे
बदरिया समन्दर में बरस गई
एक दास्ताँ है एक आफ्साना है
जो मीलो दूर बैठा है
उसे अब तक देखा नहीं
पर लगता मेरा अपना है
कितने भोले कितने मासूम
कितने खुश मिजाज हो तुम
नमाजियों की दुआ का
अल्फाज हो तुम
तुम, तुम हो तुम से न पहले था कोई
न होगा तुम्हारे बाद
भावनाओं का इन्कलाब हो तुम
हमारा अब जीना मरने के लीए
अगले जन्म का ख्वाब हो तुम
न पाकर भी पा लिया
न मील कर भी मिल लिया
कितना अनोखा अहसास हो तुम
देते है दुनिया वाले दुहाई
हमारे इमां की
डिगा दिया किसी ने
कुछ तो खूबी होगी
उस इंसान की
हमारे वसूल हमारे सिद्दांत
हमारी शान थी
रहने दी न परवाह जिसने अंजाम की
कुछ तो खूबी होगी उस इंसान की
जो हमारे खयालो में छा गए
जूनून की तरह
उनकी आवाज़ बजती है
सरगमी धुन की तरह
आँखों में हसरत जगी
जिनके दीद के रसपान की
कुछ तो खूबी होगी उस इंसान की

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जिन्दगी हर मोर्चे पर
जूझती है
जिंदगी हर मोर्चे पर
लड़ती है
किसी मोर्चे पर जिंदगी
जीत भी जाती है
फिर जीत को कायम रखने को
जिंदगी डटे रहती है
हर चुनौती से भीडाना
जिंदगी का सबूत है
कभी वेदना कभी संवेदना
के आंसू टपकना
जिन्दगी का सबूत है
लक्ष्य पाकर लक्ष्य हिन्
हो जाना जिंदगी को
मंजूर नहीं
हार कर बैठ जाना
जिंदगी का सबूत नहीं
फूलो की ताजगी व्यक्तित्व में सादगी
बोली एसी जैसी पपीहा का गीत हो
देह में पाकीजगी आँखों में दीवानगी
आवाज एसे जैसे तानसेन का संगीत हो
न चाह कर भी
चाहे जाते है
भूल कर भी
भुला नहीं पते है
जर्फे जफा करते है वे
हम मोहब्बत किये जाते है
जमाना कहता है
ठीक नहीं यह गुस्ताखी
हम है की जमाने
बगावत किये जाते है
गोदाम है पास हमारे रसद का
फिर भी फाकाकशी में जिए जाते है
आँखों में प्यास उनकी दीद की फकत
वो है की फासलों से सोहबत किये जाते है
जख्म देना हो जिनकी फितरत
उनसे बेकार है मरहम की हसरत
जिन आँखों में ख्वाब हो देखना मय्यत
वहां जिंदगी का पनपना होगा अचरज
शब्दों में अभाव है
,मेरे दिल के भाव कहने का
तेरी आँखों में भी अभाव है
,मेरे घाव देखने का
आरमान तो है मेरा
तेरे रह गुजर में बसने का
बता क्यू मन बना लिया फुल
किसी गुलसन के बनने का
दुनिया में अनोखा मेरा भारत
दोस्ती का सबब है मेरा भारत
प्रेम और स्नेह की नदिया
अपने अन्दर समां लेता है
ममता का समंदर है मेरा भारत
हमें पाता है
तुम्हे हमारी
ख़ुशी से है अदावत
हमारी ख़ुशी इसी में
की हो जाए कत्ल भी हमारी
ख़ुशी का गर तुम्हे
इशी ख़ुशी की है हसरत
हमें पाता है
हमारी हर ख्वाइश से
तुम्हारी है बगावत
हमारी यही ख्वाइश
तुम्हे वही नजारा मिले
जिस नज़ारे की तुम्हे हो चाहत
चाहे वो हो हमारी मय्यत
देखते है हम ख्वाब
ले तुम्हारा हर आरमान अंजाम
काश तुम समझ पाते पयाम
लफ्ज नहीं जज्बातों की है
है हकीकत
मेरी मन्नत के खिलाफ मांगना
नहीं कोई मन्नत

सोमवार, 12 जुलाई 2010

अभी तो वो समझ ही नहीं सके

क्या होता है समझाना

बिन खेले हर गए वो

अभी तो समझ ही न सके

क्या होता है हारना

सब देते है उन्हें संज्ञा

फूलो की

बिन खिले मुरझा गए

अभी तो वो समझ ही न सके

क्या होता है खिलाना

अभी तो वो समझ ही न सके

क्या होता है समझाना

कारखानों की जहरीली गैसों में

होटलों के झूटे बर्तनों में

वो अपना भविष्य ढून्ढ रहे है

आजादी किसे कहते है

आजाद हिन्दुस्तान से पूछ रहे है

तुम्हे देखे बगैर तुम पर कविता की

गुस्ताखी की है

गर आए पसंद कविता तो तारीफ़ की

ख्वाइश की है

तुम बिन्दाश हो ,तुम खुश मिजाज हो

भावनाओ के आनागिनित पुष्प

लीए आमलातास हो

तुम ईद हो तुम दीप हो

प्रीत की परिभाषा में तुम संगीत हो

तुम्हारे दिल के अंतर में उतरने की

हमने अजमाइश की है

न आए पसंद तो माफ़ी की

गुजारिश की है

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

शब्दों में सच है ।


जो लिखा हकीकत है


फिर भी भारत गणतंत्र है


भूखो को भूखा रखो


पूंजीवादी व्यवस्था का


यही मन्त्र है


ये जूठा गणतंत्र है

शनिवार, 3 जुलाई 2010

महंगाई पर पूरा विपक्ष भारत बंद में सामिल है क्या मनमोहन सरकार महंगाई पर लगाम लगा पाएगी नहीं
महंगाई पर रोक लगाने का एक मात्र तरीका है देशी -विदेशी बड़ी -बड़ी कम्पनियों को करो में दी जारही छूट को बंद कर उन पर टेक्स लगाया जाये देश की ७७ फिसद जनता के लीए महात्मा गांधी रोजगार ग्यारंटी में ४०हजार १सौ करोड़ का प्रावधान बजट किया देश के मुट्ठी भर पूंजीपतियों को ५८हजार करोड़ की तेक्सो में छूट तत्कालीन वित्त मंत्रीपि.चिन्दरम ने दी है सरकार की इस निति पर वामदलों ने हमेशा संसद में और संसद के बाहर लड़ा है आज फिर भारत बंद अपील वामदलों ने की है

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

जब बैठा कविता लिखने को
न होटो पर वो हंसी थी
जब यद् उसकी आई तो रूह भी
मेरी रोई थी
किस कदर करू उसकी तारीफ़
भगवान ने भी उसे पाई थी
भूल न पाता हूँ उसकी यादो को
जब वो रात को अपने आँचल में
छुपा लिया कराती थी
मै जब रूठ जाता तो मुझे मनाया करती थी
मेरे सारे गम लेकर आपनी खुशिया दिया करती थी
आज न वो मेरे पास है
छोड़ कर चली गई
क्यू कहू उसे बेवफा
क्यू की वो मेरी माँ थी
जो स्वर्ग वास चली गई

बुधवार, 30 जून 2010

महज औरत होना सजा है
तो सजा का प्रतिरोध न करना
तुम्हे और औरत बना देता है
माँ बनी बहन बनी ,बनी तुम बेटी
पत्नी ,प्रेमिका
गम बाटती रही सबका
सुख बाटती रही अपने हिस्से का
कभी बाप कभी भाई .सिकार होती रही
पति और प्रेमी के गुस्से का
पर तुम्हे अब अपने अस्तित्व के लीए
लड़ना होगा ,समाज रूपी शिशुपाल की
कितनी ही ९९गालियों का हिशाब
बनके कृष्ण ललना होगा
फिर तुम्हारा महज औरत
होना सजा न होगा

हम उस देश के मर्द जंहा बाप ने
दहेज़ की आग आपनी बेटी
जलती देखि
हम उस देश के मर्द है
जंहा बेटो ने अपनी जननी
की आबरू लुटते देखि
ऐ मेरे देश के कर्ण धारो
नेताओ के रूप में
असुरो
बंद कर दो अब
नारी आरक्षण का नारा
बम्बई के भिन्डी बाजार में
रोटी के बदले काय बेचते
कितनी ही मासूमो की
लाचारी और बेबसी देखि

मंगलवार, 29 जून 2010

चुनाव करीब आने लगे है

कुछ लोग हमारे क्षेत्र की खबर लगे है

वो करने लगे हम से वायदा

हमें वोट दो हम जित जायेंगे तो करेंगे

आपका फायदा

हमें तो उन पर भरोसा आता नहीं

हमने सोचा इनको कहाँ खोजेंगे

जब हमें आपने घर का पता नहीं

चुनाव हो जाने के बाद वही हुआ

जिसका हमें भय था

भगवान तो धरती पर दूध पि कर

अपनी मौजूदगी का प्रमाण दे गए

मगर हमारे क्षेत्र के नेता तो भगवान से बड़े

निकले जो चुनाव जितने के बाद अंतर्ध्यान हो गए

मेरा बचपन जो मुझसे रूठ गया था

हालातो की कटीली झाड़ियो में छुट गया था

उस बचपन को जीने आता हूँ

आप मुझे आपने लगे थे

इस लीए अपन्त्व का रस पिने आता हूँ

आप के सामीप्य में गमो से दूर हुआ था

प्यार तो चंद पलोके लीए मिला

मगर भरपूर मिला था

आपने जितने भी हसीं पल दिए

उन पलो के लीए धन्यवाद् देता हूँ

अगर फुर्सत मिले तो हमें याद कर लेना

हम आज भी आप को यद् करते है

अपने ,अपने बनने से पहले बदल गए

अश्क बन के आँखों से निकल गए

प्रीत की प्यास जगी थी जिन्हें निर्मल झील समझ के

वो खारे सागर में बदल गए

उनकी स्म्रतियां लिपटी थी मन से

अमरबेल की तरह

और हम सूखे दरख्त में बदल गए

पूजा के लीए जाया करते थे

जिन मंदिरों में

अब वो भी खंडरो में बदल गए !

नंगे पेरो में शब्दों के चप्पल पहना कर

कमीज के फटे चिथड़ो में शब्दों लगाकर

फूलो से सजे मंच से नेता मुझे करोडो की योजना

बताते है

मेरी सुबह से रोटी के इंतजार में रात कट जाती है

और नेता मेरे नाम पर लाखो कम लेते है !

सोचता हूँ तुम्हारे किसी अंग पर कोईलिखू कविता \
पर बता किस अंग पर लिखू कविता !
तुम्हारा हर अंग एक छंद है
मै क्या लिख पाऊंगा कविता
तू खुद एक काव्य ग्रन्थ है !
जमी से जुडा aआदमी जमी से कट रहा है \
इन्सान होने का दम भरता आदमी
इंसानियत को लुट रहा है \
स्वार्थ की आग लगी है \
चारो और भुझाने की याचना
किससे करे ।
यंहा तो सागर से धुवा उठ रहा है

सोमवार, 28 जून 2010

आज कल भ्रष्टाचार का विरोध
कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है !
पर इसका नशा उतरने के
बजाए cहद रहा है !
जो इसके खिलाफ बोल रहा है
वो भी कही न कही
अपने लीए भ्रष्टाचार का
नया तरीका गढ़ रहा है !
सब परेसान है कैसे
मिटाया जाये इसको
हमने कहा परेसान
होने की कोई बात नहीं
यह मिटाना आसान है
बस हमें एक हजार रुपये दो
हम मिटा देंगे
हमारी बड़े साहब से पहचान है

विवरण दिखाएँ ७ अप्रैल
नाम है खाद्य सूरश्या कानून ।परन्तु कानून में जो व्यवस्था दी गई है . वह वह इस देश के करोडो गरीबो के लीए खाद्य असुरषा कानून बन जायेगा म.प . सर्कार ,गरीबो को केवल २० किलो राशन ३रू. की दर से देती है. जबकि केंद्र सर्कार ३५किलो राशन ४.६५पैसे की दर से देती है .राज्य सर्कार एवंkendr सरकार के बी.पी.एल.परिवारों की संख्या में बहूत बड़ा सरकार से जो राशन केंद्र के मानेगये आकड़ो के अनुसार कम कोटा मीलता है.राज्यसरकार उस राशन को २० किलो के मान से गरीबो में बाट देती है. अगर .द्वारा .तथा कथितखाद्य सुर्षा कानून पारित हो जाता है तो प्रस्तावित कानून अनुसार केंद्र.द्वारा उचित मूल्य पर केवल २५ किलो राशन दिया जायेगा .उसमे से म्ध्यप्र्देश्सर्कार जब अन्य गरीबो को राशन देने के लीए जब बटवारा करेगी मात्र ८-१० की. राशन प्रत्येक परिवार को देगी जंहा करो में रियायतों के नाम पर कार्परेट जगत को ८० हजार करोड़ रूपये लूटा रही है. देश करोड़ो गरीबो के साथ ये कैसा भद्दा मजाक कर रही है . जीतेन्द्र खेड़े

बुधवार, 16 जून 2010

क्या है कविता नहीं जनता

क्या है कविता जानता नहीं मै \
टूटे फूटे शब्दों को
कविता बनता हूँ मै !
आंसू है स्याही नहीं
खरीद सकता मै
आपने ही जज्बातों को कविता
बनाता हूँ मै
समझो न दलाल मुझे खुद बिकना
खुद बिकना चाहता हूँ