बुधवार, 8 दिसंबर 2010
शुक्रवार, 27 अगस्त 2010
शनिवार, 21 अगस्त 2010
शनिवार, 14 अगस्त 2010
बुधवार, 11 अगस्त 2010
अब समझ गया ,तब मै पुष्प था
न समझा था चमन क्या होता है
अकड क्या ,शहर क्या ,जग क्या होता है
अब मै मनुज हूँ समझ गया मनुज क्या होता है
अपनी जिद और बचपन से मिलकर
tanaaw mukt umango के संग खेलता था
अपनत्व ,ममत्व की मिश्रित पवन में
पतंग सा लहराता था
पर आज में अपने ही अक्स से घबराता हूँ
लोग कहते है अब में बड़ा हो गया हूँ
सोमवार, 9 अगस्त 2010
कोई परवाह नहीं
मेरी कविता पर
न मिले वाह-वाह
कोई परवाह नहीं
सरहद के पार है जो
इस पार भी वही हालत है
यहाँ हिन्दू मुस्लिम
वहा सिया सुन्नी
यहाँ कहे घुस पेठिये
वहा काफ़िर है
ये फकत सियासती तकरीर है
जिस दिन तुम मनाओ
उसी दिन हमारा भी
आज़ादी का जश्न है
पर कायम एक प्रश्न है
कौम मजहब और जुबान
का फसाद
इधर भी वही विवाद
खीच रहा जो नफ़रत की लकीर है
हमारे हुक्मरान उसी के वजीर है
झूट नहीं हकीक़त को लिखा है
साजिशो का निजाम अमेरिका है
गोला बारूद मिसाईले उसकी तिजारत
हमारे अमन से उसकी अदावत
पर सरहदों को अब दिलो से paat दो
उसकी मिसाइलो को उसी की और मोड़ दो
शनिवार, 7 अगस्त 2010
हमारे इमां की
डिगा दिया किसी ने
कुछ तो खूबी होगी
उस इंसान की
हमारे वसूल हमारे सिद्दांत
हमारी शान थी
रहने दी न परवाह जिसने अंजाम की
कुछ तो खूबी होगी उस इंसान की
जो हमारे खयालो में छा गए
जूनून की तरह
उनकी आवाज़ बजती है
सरगमी धुन की तरह
आँखों में हसरत जगी
जिनके दीद के रसपान की
कुछ तो खूबी होगी उस इंसान की
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जूझती है
जिंदगी हर मोर्चे पर
लड़ती है
किसी मोर्चे पर जिंदगी
जीत भी जाती है
फिर जीत को कायम रखने को
जिंदगी डटे रहती है
हर चुनौती से भीडाना
जिंदगी का सबूत है
कभी वेदना कभी संवेदना
के आंसू टपकना
जिन्दगी का सबूत है
लक्ष्य पाकर लक्ष्य हिन्
हो जाना जिंदगी को
मंजूर नहीं
हार कर बैठ जाना
जिंदगी का सबूत नहीं
तुम्हे हमारी
ख़ुशी से है अदावत
हमारी ख़ुशी इसी में
की हो जाए कत्ल भी हमारी
ख़ुशी का गर तुम्हे
इशी ख़ुशी की है हसरत
हमें पाता है
हमारी हर ख्वाइश से
तुम्हारी है बगावत
हमारी यही ख्वाइश
तुम्हे वही नजारा मिले
जिस नज़ारे की तुम्हे हो चाहत
चाहे वो हो हमारी मय्यत
देखते है हम ख्वाब
ले तुम्हारा हर आरमान अंजाम
काश तुम समझ पाते ए पयाम
ए लफ्ज नहीं जज्बातों की है
है हकीकत
मेरी मन्नत के खिलाफ मांगना
नहीं कोई मन्नत
सोमवार, 12 जुलाई 2010
अभी तो वो समझ ही नहीं सके
क्या होता है समझाना
बिन खेले हर गए वो
अभी तो समझ ही न सके
क्या होता है हारना
सब देते है उन्हें संज्ञा
फूलो की
बिन खिले मुरझा गए
अभी तो वो समझ ही न सके
क्या होता है खिलाना
अभी तो वो समझ ही न सके
क्या होता है समझाना
कारखानों की जहरीली गैसों में
होटलों के झूटे बर्तनों में
वो अपना भविष्य ढून्ढ रहे है
आजादी किसे कहते है
आजाद हिन्दुस्तान से पूछ रहे है
तुम्हे देखे बगैर तुम पर कविता की
गुस्ताखी की है
गर आए पसंद कविता तो तारीफ़ की
ख्वाइश की है
तुम बिन्दाश हो ,तुम खुश मिजाज हो
भावनाओ के आनागिनित पुष्प
लीए आमलातास हो
तुम ईद हो तुम दीप हो
प्रीत की परिभाषा में तुम संगीत हो
तुम्हारे दिल के अंतर में उतरने की
हमने अजमाइश की है
न आए पसंद तो माफ़ी की
गुजारिश की है
गुरुवार, 8 जुलाई 2010
शनिवार, 3 जुलाई 2010
महंगाई पर रोक लगाने का एक मात्र तरीका है देशी -विदेशी बड़ी -बड़ी कम्पनियों को करो में दी जारही छूट को बंद कर उन पर टेक्स लगाया जाये देश की ७७ फिसद जनता के लीए महात्मा गांधी रोजगार ग्यारंटी में ४०हजार १सौ करोड़ का प्रावधान बजट किया देश के मुट्ठी भर पूंजीपतियों को ५८हजार करोड़ की तेक्सो में छूट तत्कालीन वित्त मंत्रीपि.चिन्दरम ने दी है सरकार की इस निति पर वामदलों ने हमेशा संसद में और संसद के बाहर लड़ा है आज फिर भारत बंद अपील वामदलों ने की है
गुरुवार, 1 जुलाई 2010
न होटो पर वो हंसी थी
जब यद् उसकी आई तो रूह भी
मेरी रोई थी
किस कदर करू उसकी तारीफ़
भगवान ने भी उसे पाई थी
भूल न पाता हूँ उसकी यादो को
जब वो रात को अपने आँचल में
छुपा लिया कराती थी
मै जब रूठ जाता तो मुझे मनाया करती थी
मेरे सारे गम लेकर आपनी खुशिया दिया करती थी
आज न वो मेरे पास है
छोड़ कर चली गई
क्यू कहू उसे बेवफा
क्यू की वो मेरी माँ थी
जो स्वर्ग वास चली गई
बुधवार, 30 जून 2010
तो सजा का प्रतिरोध न करना
तुम्हे और औरत बना देता है
माँ बनी बहन बनी ,बनी तुम बेटी
पत्नी ,प्रेमिका
गम बाटती रही सबका
सुख बाटती रही अपने हिस्से का
कभी बाप कभी भाई .सिकार होती रही
पति और प्रेमी के गुस्से का
पर तुम्हे अब अपने अस्तित्व के लीए
लड़ना होगा ,समाज रूपी शिशुपाल की
कितनी ही ९९गालियों का हिशाब
बनके कृष्ण ललना होगा
फिर तुम्हारा महज औरत
होना सजा न होगा
मंगलवार, 29 जून 2010
चुनाव करीब आने लगे है
कुछ लोग हमारे क्षेत्र की खबर लगे है
वो करने लगे हम से वायदा
हमें वोट दो हम जित जायेंगे तो करेंगे
आपका फायदा
हमें तो उन पर भरोसा आता नहीं
हमने सोचा इनको कहाँ खोजेंगे
जब हमें आपने घर का पता नहीं
चुनाव हो जाने के बाद वही हुआ
जिसका हमें भय था
भगवान तो धरती पर दूध पि कर
अपनी मौजूदगी का प्रमाण दे गए
मगर हमारे क्षेत्र के नेता तो भगवान से बड़े
निकले जो चुनाव जितने के बाद अंतर्ध्यान हो गए
मेरा बचपन जो मुझसे रूठ गया था
हालातो की कटीली झाड़ियो में छुट गया था
उस बचपन को जीने आता हूँ
आप मुझे आपने लगे थे
इस लीए अपन्त्व का रस पिने आता हूँ
आप के सामीप्य में गमो से दूर हुआ था
प्यार तो चंद पलोके लीए मिला
मगर भरपूर मिला था
आपने जितने भी हसीं पल दिए
उन पलो के लीए धन्यवाद् देता हूँ
अगर फुर्सत मिले तो हमें याद कर लेना
हम आज भी आप को यद् करते है
सोमवार, 28 जून 2010
कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है !
पर इसका नशा उतरने के
बजाए cहद रहा है !
जो इसके खिलाफ बोल रहा है
वो भी कही न कही
अपने लीए भ्रष्टाचार का
नया तरीका गढ़ रहा है !
सब परेसान है कैसे
मिटाया जाये इसको
हमने कहा परेसान
होने की कोई बात नहीं
यह मिटाना आसान है
बस हमें एक हजार रुपये दो
हम मिटा देंगे
हमारी बड़े साहब से पहचान है
नाम है खाद्य सूरश्या कानून ।परन्तु कानून में जो व्यवस्था दी गई है . वह वह इस देश के करोडो गरीबो के लीए खाद्य असुरषा कानून बन जायेगा म.प . सर्कार ,गरीबो को केवल २० किलो राशन ३रू. की दर से देती है. जबकि केंद्र सर्कार ३५किलो राशन ४.६५पैसे की दर से देती है .राज्य सर्कार एवंkendr सरकार के बी.पी.एल.परिवारों की संख्या में बहूत बड़ा सरकार से जो राशन केंद्र के मानेगये आकड़ो के अनुसार कम कोटा मीलता है.राज्यसरकार उस राशन को २० किलो के मान से गरीबो में बाट देती है. अगर .द्वारा .तथा कथितखाद्य सुर्षा कानून पारित हो जाता है तो प्रस्तावित कानून अनुसार केंद्र.द्वारा उचित मूल्य पर केवल २५ किलो राशन दिया जायेगा .उसमे से म्ध्यप्र्देश्सर्कार जब अन्य गरीबो को राशन देने के लीए जब बटवारा करेगी मात्र ८-१० की. राशन प्रत्येक परिवार को देगी जंहा करो में रियायतों के नाम पर कार्परेट जगत को ८० हजार करोड़ रूपये लूटा रही है. देश करोड़ो गरीबो के साथ ये कैसा भद्दा मजाक कर रही है . जीतेन्द्र खेड़े
बुधवार, 16 जून 2010
क्या है कविता नहीं जनता
टूटे फूटे शब्दों को
कविता बनता हूँ मै !
आंसू है स्याही नहीं
खरीद सकता मै
आपने ही जज्बातों को कविता
बनाता हूँ मै
समझो न दलाल मुझे खुद बिकना
खुद बिकना चाहता हूँ