सोमवार, 12 जुलाई 2010

अभी तो वो समझ ही नहीं सके

क्या होता है समझाना

बिन खेले हर गए वो

अभी तो समझ ही न सके

क्या होता है हारना

सब देते है उन्हें संज्ञा

फूलो की

बिन खिले मुरझा गए

अभी तो वो समझ ही न सके

क्या होता है खिलाना

अभी तो वो समझ ही न सके

क्या होता है समझाना

कारखानों की जहरीली गैसों में

होटलों के झूटे बर्तनों में

वो अपना भविष्य ढून्ढ रहे है

आजादी किसे कहते है

आजाद हिन्दुस्तान से पूछ रहे है

तुम्हे देखे बगैर तुम पर कविता की

गुस्ताखी की है

गर आए पसंद कविता तो तारीफ़ की

ख्वाइश की है

तुम बिन्दाश हो ,तुम खुश मिजाज हो

भावनाओ के आनागिनित पुष्प

लीए आमलातास हो

तुम ईद हो तुम दीप हो

प्रीत की परिभाषा में तुम संगीत हो

तुम्हारे दिल के अंतर में उतरने की

हमने अजमाइश की है

न आए पसंद तो माफ़ी की

गुजारिश की है

गुरुवार, 8 जुलाई 2010

शब्दों में सच है ।


जो लिखा हकीकत है


फिर भी भारत गणतंत्र है


भूखो को भूखा रखो


पूंजीवादी व्यवस्था का


यही मन्त्र है


ये जूठा गणतंत्र है

शनिवार, 3 जुलाई 2010

महंगाई पर पूरा विपक्ष भारत बंद में सामिल है क्या मनमोहन सरकार महंगाई पर लगाम लगा पाएगी नहीं
महंगाई पर रोक लगाने का एक मात्र तरीका है देशी -विदेशी बड़ी -बड़ी कम्पनियों को करो में दी जारही छूट को बंद कर उन पर टेक्स लगाया जाये देश की ७७ फिसद जनता के लीए महात्मा गांधी रोजगार ग्यारंटी में ४०हजार १सौ करोड़ का प्रावधान बजट किया देश के मुट्ठी भर पूंजीपतियों को ५८हजार करोड़ की तेक्सो में छूट तत्कालीन वित्त मंत्रीपि.चिन्दरम ने दी है सरकार की इस निति पर वामदलों ने हमेशा संसद में और संसद के बाहर लड़ा है आज फिर भारत बंद अपील वामदलों ने की है

गुरुवार, 1 जुलाई 2010

जब बैठा कविता लिखने को
न होटो पर वो हंसी थी
जब यद् उसकी आई तो रूह भी
मेरी रोई थी
किस कदर करू उसकी तारीफ़
भगवान ने भी उसे पाई थी
भूल न पाता हूँ उसकी यादो को
जब वो रात को अपने आँचल में
छुपा लिया कराती थी
मै जब रूठ जाता तो मुझे मनाया करती थी
मेरे सारे गम लेकर आपनी खुशिया दिया करती थी
आज न वो मेरे पास है
छोड़ कर चली गई
क्यू कहू उसे बेवफा
क्यू की वो मेरी माँ थी
जो स्वर्ग वास चली गई